विश्व में भारत जहां माँ की पूजा श्रृष्टि के शुभारंभ से आज तक

विश्व में भारत जहां माँ की पूजा श्रृष्टि के शुभारंभ से आज तक

विश्व में भारत जहां माँ की पूजा श्रृष्टि के शुभारंभ से आज तक

सत्येन्द्र कुमार शर्मा

भारत में पांडवों के कीलें का खंडहर,राम का अयोध्या, नालंदा विश्वविद्यालय का खंडहर आज भी दृष्टिगत है।लेकिन द्वापर, त्रेता, फिर कलयुग की चर्चा की जाती हैं लेकिन श्रृटी के शुभारंभ मेंं अवतरित भगवान शिव एवं उनकी अर्द्धांगिनी एवं उनके संतति के अवतरण का ठीक-ठीक गणना नहीं मालूम हो पड़ता हैं । लेकिन अर्द्धनारीश्वर की पूजा अर्चना आज भी जारी है।
नवरात्र माँ के विभिन्न रुपों की पूजा कर दिपावली को माँ लक्ष्मी,सूर्य पूजा छठी मईया की पूजा की भारतीय संस्कृति अध्यात्म का अनुठा पर्व कालांतर से किया जा रहा है। माँ के पूजन के उपरांत हाल ही में विजयदशमी मनाया गया है।लोग विजयादशमी के मौके पर सुबह वेद मंत्रोच्चार के साथ हवन, प्रतिमा विसर्जन कर बैंड बाजा के साथ प्रतिमा का जल में विसर्जित करने में हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में लगे रहे। नवरात्र में माँ के विभिन्न रुपों की पूजा अर्चना वेंद मंत्रोच्चार के साथ करने के उपरांत स्थापित प्रतिमा का विसर्जन की धूमधाम से विजयोत्सव की झांकी प्रस्तुत किया जाता रहा है।


माँ की महता के बखान को शब्दों में बयां करना असंभव सा है।
विश्व में मात्र भारत का दर्शन साहित्य अध्यात्म में  “माँ” को सबसे ऊँचा दर्जा आदि काल व श्रृटी के शुभारंभ से प्राप्त है। नवरात्र पूजन हो या दिपावली का लक्ष्मी पूजन मेंं भारतीय आदर्श आज भी कायम और दृष्टव्य है।
 इसीलिये हमारे हिंदुस्तान में श्रृष्टि के शुभारंभ मेंं अवतरित माँ के विभिन्न रुपों की पूजा अर्चना किया जाता रहा है।माँ को भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया जाता रहा है। माँ हमें पूरे 9 महीने अपने पेट में रखती है।“ धरती पर चलने तक गोद में रखती हैं। बड़ी से बड़ी आंधी-तूफान क्यों न आ जाये फिर भी हमें वो किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचने देती है। जिंदगी में बड़ी से बड़ी मुश्किल की घड़ी क्यों न आ जाये लेकिन माँ अपने बच्चे को नहीं छोड़ती है।


 अर्थात हमें भी कभी भी अपने मम्मी-पापा का साथ नहीं छोड़ना श्रेयस्कर का शिक्षा स्वरूप नवरात्र व्रत पूजा अर्चना किया जाता हैं। जब हम छोटे थे तब उन्होंने एक पल के लिये भी हमारा हाथ नहीं छोड़ा है।हमें उनका हाथ नहीं छोड़ने का नवरात्र पूजन संदेश देता है। विश्व के अन्य कोने में माँ की महता एवं उनके पूजन का लौकिक विश्वास अन्य देशों के धर्म संस्कृति में सूनने को नहीं मिलता है।