इलाज की जानकारी और शांति की जागरूकता, फाइलेरिया रोगियों के लिए बन रही मिसाल
अब ग्रुप बना करती हैं लोगों को जागरूक

मुजफ्फरपुर, 7 जुलाई ।
नीम हकीम और निजी चिकित्सकों का लोभ किस कदर किसी मरीज को मुसीबत में डालता है यह मीनापुर प्रखंड के नंदना गांव की शांति से बेहतर कोई नहीं बता सकता। पिछले 20 वर्षों से वह इसका खामियाजा भुगत रही थी। कभी किसी चिकित्सक ने पेन किलर तो किसी ने बीपी की दवा भी खिलाई, जबकि उसका मर्ज कुछ और था। उनके सही बीमारी फाइलेरिया का पता तब चला जब वह मीनापुर स्वास्थ्य केंद्र में आकर दिखाती हैं। कुछ महीनों की दवा से ही सूजन और दर्द में आराम मिला। इसके बाद तो जैसे शांति उन जैसी सभी महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रेरणा बन गयी जिन्हें फाइलेरिया था। अब वह एक ग्रुप बनाकर लोगों को फाइलेरिया के लक्षण और उसके उपचार के लिए सही जगह के बारे में बता रही हैं।
20 साल से दाहिने पैर में था फाइलेरिया-
शांति देवी अब 60 की हैं। बीस साल पहले की बात बताते हुए वह कहती हैं कि खेत में काम करते हुए उन्हें अपने पैर में कुछ चुभन हुई। समझा कि किसी कीड़े ने काटा होगा। एक दो दिन बाद ही शरीर में दर्द और बुखार हुआ। उस वक्त यह ठीक हो गया। उसके बाद फिर से बाएं पैर में दर्द हुआ। दवा खाने पर ठीक हो गया। उसके कुछ वर्षों बाद ही शांति को उठने -बैठने में भी दिक्कत होने लगी। प्राइवेट डॉक्टरों का चक्कर लगाकर वह थक चुकी थी। खाने में ठंडी चीज को भी छोड़ दिया, पर शरीर में राहत नहीं मिली। जैसे -तैसे पांच बच्चों का पालन पोषण और घर गृहस्थी सभांलती शांति को एक किसी सरकारी अस्पताल के कर्मी ने ही मीनापुर स्वास्थ्य केंद्र जाने की सलाह दी।
दूसरे फाइलेरिया रोगी की खुद कटवाती हैं पुर्जा -
शांति कहती हैं कि जब मुझे फाइलेरिया में आराम हुआ तब मैंने यह बात अपने ही गांव में कुछ महिलाओं को बताया। धीरे -धीरे मेरे पास एक बार 8 महिलाएं आयी। फिर 4 आयी। सबने कहा कि आप चलकर दिखाइए। मैं गयी और सबों के पुर्जे कटवाकर जांच और उपचार कराया। मैंने अब फाइलेरिया की जागरूकता के लिए एक ग्रुप भी बनाया है। जिसके माध्यम से आंगनबाड़ी और जीविका दीदियों सहित गांव की महिलाओं को फाइलेरिया पर जागरूक करती हूं।