विश्व में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख से भी अधिक मौतें टाइफायड से होती हैं - डॉ आनंद कुमार वत्स"

विश्व में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख से भी अधिक मौतें टाइफायड से होती हैं - डॉ आनंद कुमार वत्स"

विश्व में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख से भी अधिक मौतें टाइफायड से होती हैं - डॉ आनंद कुमार वत्स"

क्रांति कुमार पाठक / गरीब दर्शन - विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएच‌ओ) के नए अनुमानों के अनुसार, विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष लगभग 28,000 से लेकर 1,61,000 टाइफायड से संबंधित मौतें होती हैं, जबकि दुनिया भर में प्रतिवर्ष इस बैक्टीरियल डिजीज के 11 से 21 मिलियन मामले सामने आते हैं। टाइफाइड भारत के साथ-साथ अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों, अफ्रीका, मध्य और दक्षिण अमेरिका एवं पश्चिमी प्रशांत देशों में अधिक होता है। क्योंकि इन क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता खराब होने के साथ ही सीवेज की साफ-सफाई पर भी अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है।

इस बात की जानकारी देते हुए प्रसिद्ध युवा फिजिशियन डॉ आनंद कुमार वत्स ने बताया कि टाइफायड एक गैस्ट्रोइंटेस्टिनल इंफेक्शन है, जो साल्मोनेला टाइफी नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। उनके मुताबिक यदि किसी व्यक्ति को क‌ई दिनों से बुखार आ रहा है तो उसे सबसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या यह सामान्य बुखार है या टाइफायड बुखार है? टाइफायड बुखार के लक्षण कुछ इस प्रकार के होते हैं। टाइफाइड होने पर मरीज को तेज बुखार, तेज सरदर्द, शरीर में दर्द, ठंड लगना, सीने पर लाल रंग के निशान, भूख न लगना, पेट में दर्द, डायरिया, जी मिचलाना और उल्टी मुख्य रूप से होता है। दूषित पानी या भोजन के जरिए इस बैक्टीरियल इंफेक्शन के होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। साल्मोनेला टाइफी मुंह के जरिए आपकी आंतों में प्रवेश करके वहां लगभग एक से तीन सप्ताह तक रहता है। उसके बाद आंतों की दीवार के जरिए आपके रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाता है। खून से ये टाइफ बैक्टीरिया अन्य ऊतकों और अंगों में फैलकर कोशिकाओं के अंदर छिप जाता है, जिसका पता आपकी प्रतिरक्षा कोशिकाएं भी नहीं लगा पाती हैं। भारत में यह बीमारी बहुत आम है। टाइफायड के लिए बेहतर इलाज उपलब्ध है। हालांकि, इलाज ना कराने की स्थिति में यह काफी घातक और जानलेवा हो जाता है। डॉ आनंद कुमार वत्स बतलाते हैं कि यदि आपका बुखार 2-3 दिनों में भी नहीं उतरता है और उपरोक्त बताए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण नजर आए तो आपको अलर्ट हो जाना चाहिए‌ और खुद ही दवाई लेने की बजाय योग्य चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। वह ब्लड और यूरिन टेस्ट की सलाह देंगे, जिससे टाइफायड है या नहीं इस बात की पुष्टि आसानी से हो जाता है। टाइफायड की संभावित जटिलताओं में किडनी फेलियर, गंभीर जीआई रक्तस्राव आदि शामिल हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार, टाइफायड से प्रभावित लगभग 3-5 प्रतिशत लोग इस जीवाणु के वाहक बन जाते हैं। एसिम्प्टोमेटिक लोग भी टाइफायड बैक्टीरिया के वाहक बन सकते हैं।

दरअसल, टाइफायड बुखार तब होता है, जब कोई व्यक्ति ऐसे खाद्य पदार्थों या पानी का सेवन करता है, जिसमें सालमोनेला टाइफी बैक्टीरिया की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसके अलावा, एक टाइफाइड रोगी के मल  से उसके चारों-तरफ होने वाली पानी की आपूर्ति भी दूषित हो सकती है। इसके बदले में मरीज के चारों-तरफ होने वाला फूड सप्लाई चेन भी दूषित हो सकता है। डॉ वत्स कहते हैं कि टाइफायड में बैक्टीरिया आंतों को प्रभावित करते हैं इसलिए इसमें डायट का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। इसमें भारी, तला-भुना मसालेदार भोजन से परहेज करना चाहिए और अधिक से अधिक तरल पदार्थ जैसे दूध, नारियल पानी, फलों का जूस और ताजे फल जैसे सेब, मौसम्बी, अनार, अंगूर, पपीता का सेवन करना चाहिए। वहीं पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए एक ग्लास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर पीना चाहिए। इतना ही नहीं पूरे दिन सिर्फ उबाला हुआ पानी का ही सेवन करना चाहिए। टाइफाइड होने पर एंटीबायोटिक्स जैसे सिप्रोफ्लैक्सिन और सेफ्ट्रिएक्जोन आमतौर पर इलाज में दिया जाता है। एजिथ्रोमाइसिन भी इसके इलाज का एक दूसरा विकल्प है। हालांकि, ये प्रेग्नेंट महिलाओं को खाने के लिए नहीं दी जाती हैं। टाइफायड के गंभीर मामलों में कई बार आंतों में छेद हो जाता है, जिसे सिर्फ सर्जरी के जरिए ही ठीक किया जा सकता है।टाइफायड बुखार होने पर डॉक्टर  वत्स कहते हैं कि पीड़ित को हेल्दी और बैलेंस डाइट लेनी चाहिए, ताकि वह आसानी से पच जाए। टाइफायड से निपटने के लिए डायट में कार्ब्स, फैट और प्रोटीन के संतुलन को बनाए रखने की आवश्यकता होती है। डॉ  वत्स कहते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, टाइफायड से बचाव के लिए दो टीकों की सिफारिश करता है, जिसमें से एक निष्क्रिय टीका शॉट और दूसरा लाइव टीका है।

वैक्सीन के अलावा कई अन्य उपाय ऐसे हैं, जिन्हें अपनाकर आप टाइफायड से बचा जा सकता है। जैसे - हाथों की साफ- सफाई का ख्याल रखें। खाना खाने से पहले और वॉशरूम से आने के बाद हाथों को साबुन से धोएं। घर के बर्तनों को साफ-स्वच्छ पानी से धोएं। घर का बना ताजा और गर्म खाना खाएं, क्योंकि उच्च तापमान में बैक्टीरिया के बढ़ने की संभावना कम हो जाती है। कच्ची सब्जी, फल खाने, मांसाहारी भोजन और दूषित पानी पीने से बचें। इसके साथ ही चाय, काॅफी और अन्य कैफीन युक्त चीजों से परहेज करें, क्योंकि इससे गैस की समस्या हो सकती है। घी, तेल, बेसन, मक्का, शक्करकंद, कटहल आदि का सेवन न करें। लाल मिर्च, चिली सॉस,गरम मसाला,अचार आदि के साथ ही गर्म तासीर वाली चीजों से भी परहेज करना चाहिए।