शाश्वत को मिला मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना से नया जीवनदान
शाश्वत को मिला मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना से नया जीवनदान

शाश्वत को मिला मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना से नया जीवनदान
- चार साल के मासूम के दिल में था छेद
- ढाई साल में लगा था बीमारी का पता
मुजफ्फरपुर, 30 जून।
संतान सबको प्रिय होती है। चाहे वह अमीर हो या गरीब। वह उन्हें वह सब कुछ देना चाहते हैं जो उनकी संतान चाहती है, पर कुढ़नी प्रखंड के पुरूषोत्त्मपुर के सुजीत कुमार शर्मा की बैचेनी कुछ अलग थी। उनके 4 साल के इकलौते बेटे शाश्वत के दिल में छेद था। यह बात उन्हें ढाई साल की उम्र में ही पता लग गया था। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। शाश्वत के इलाज में बहुत अधिक खर्च था। एक बैंक में रोज के पैसों में काम करने वाले सुजीत सामर्थ्य के अनुसार बेटे को दिखा रहे थे। फिर उन्हें एक दिन राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के बारे में पता चला। जिसमें मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के अंतर्गत उनके बेटे का इलाज बिल्कुल मुफ्त हो रहा था। 21 अक्टूबर को सुजीत फ्लाइट से राज्य सरकार के खर्चे पर अहमदाबाद गए जहां उनके बेटे का सफल इलाज हुआ और शाश्वत अभी पूरी तरह से आम बच्चों की जिंदगी जी रहा है।
शुरुआत में रहता था निमोनिया-
शाश्वत के पिता सुजीत शर्मा कहते हैं कि जब वह करीब ढाई साल का था तभी उसे निमोनिया हुआ था। आस पास बहुत दिखाया पर कोई खास लाभ नहीं होता था। तभी मुजफ्फरपुर में एक निजी चिकित्सक से दिखाया तो पता चला शाश्वत के दिल में जन्म से ही छेद है। अपने सामर्थ्य के अनुसार जहां तहां दिखाया पर किसी ने इसका पक्का उपचार नहीं बताया।
निजी अस्पताल मांगते थे लाखों रुपए-
सुजीत कहते हैं पटना और लखनऊ के निजी अस्पतालों में इसका इलाज संभव था। पर वहां वह लाखों रुपए की डिमांड करते थे। मेरे पास न वैसी जमीन है न ही कोई जमापूंजी जिससे मैं शाश्वत का इलाज करा पाता। पीजीआई में भी नंबर लगाया, पर वह लाइन बहुत ही लंबी थी।
मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना बना वरदान -
सुजीत कहते हैं किसी ने मुझे आरबीएसके के माध्यम से मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के बारे में बताया। 10 अक्टूबर को आईजीआईसी में बेटे की स्क्रीनिंग हुई। 4 नवंबर को पीजीआई में ऑपरेशन का नंबर आया था, पर उससे पहले ही मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के तहत 21 अक्टूबर को अहमदाबाद भेजा गया। मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के तहत न ही यात्रा के पैसे लगे और न ही उपचार के घर से एयरपोर्ट तक एम्बुलेंस में ले जाया गया और फिर वैसे ही घर तक आरबीएसके वालों ने छोड़ा भी। वहां मेरे साथ और जिलों के भी बच्चे थे। न जाने मुख्यमंत्री के बाल हृदय योजना ने कितने ही बच्चों की हंसी उसे फिर से वापस दी है।