मोदी व नीतीश के बीच कमंडल व मंडल के माध्यम से चल रहा शह व मात का खेल
मोदी व नीतीश के बीच कमंडल व मंडल के माध्यम से चल रहा शह व मात का खेल

✍️: समरेंद्र कुमार ओझा
देश की जनता 90 के दशक में हुए राजनीतिक खेल जिसे मंडल बनाम कमंडल का नाम दिया गया था एक बार फिर भारत की राजनीति मोदी वर्सेज नीतीश लालू के माध्यम से उसी मंडल व कमंडल की तरफ अग्रसारित हो चुकी है ।यह कहने व साबित करने के लिए दोनों पक्षों के द्वारा की गई पर्याप्त राजनीतिक गतिविधियां जो वर्तमान में हुई है काफी है।हम देख सकते है कि एक तरफ एनडीए के रूप में कमण्डलधारी गुट का नेतृत्व मोदी तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के रचयिता वर्ष 2014 से ही मोदी को अपना प्रबल शत्रु मानने वाले जदयू नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच शह और मात का खेल चल रहा है ।और इसमें अभी तक बिहार के परिप्रेक्ष्य में नीतीश लालू की जोड़ी भारी पड़ती दिख रही है हालांकि पूरे देश मे इसका कितना असर होगा यह तो अभी नही कहा जा सकता पर यदि इंडिया गठबंधन नीतीश को अपना नेता घोषित कर देता तो शायद यह मोदी के रथ को रोकने में या बहुत ज्यादा अवरोध खड़ा करने में सफल हो जाता । अब हम सबसे पहले मंडल से जुड़ी गतिविधियों पर नजर डालते है तो देखेंगे कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इंडिया गठबंधन के साथी बिहार के मुख्यमंत्री जदयू नेता नीतीश कुमार ने बिहार में आरक्षण का कार्ड खेल दिया है ।जी हां हम बात कर रहे हैं बिहार में आरक्षण संशोधन बिल दोनों सदनों से पास कर दिया गया है। बिहार में अब नए नियमों के अनुसार 75% आरक्षण लागू होगा। सबसे खास बात तो यह रही कि इसका विरोध किसी भी दल ने नहीं किया यहां तक की बीजेपी ने भी नहीं ।हद तो तब हो गई जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा की जरूरत पड़ी तो आरक्षण का दायरा और भी बढ़ाएंगे । ऐसे में देखना होगा कि आम चुनाव में "नीति के राज " या "आरक्षण की नीति" में से कौन सी रणनीति काम आती है। हम यह बता दें कि बिहार विधानसभा में इस बिल के पास होने के दौरान सुशासन बाबू आज दूसरी बार भी अपना आपा खो बैठे उन्होंने ऐसे-ऐसे असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के लिए किया जिसकी उनसे किसी को उम्मीद नहीं थी ।विवादों की वजह से नीतीश के विरोधी वहीं बहुत हद तक आम जनता की राय बनने लगी है कि नीतीश की दिमागी हालत ठीक नहीं है । लेकिन मोदी के खिलाफ इंडिया गठबंधन बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले या यह कहे की इंडिया गठबंधन के रचयिता नीतीश कुमार का यह सच है कि उन्होंने मोदी को परास्त करने के लिए मंडल बनाम कमंडल की राजनीति को आरक्षण की धार से तेज करने का फार्मूला निकाल लिया है। उन्होंने बिहार में जातिगत जनगणना करवा कर आरक्षण संशोधन विधेयक पास कराया है। आने वाले लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन वाले खासकर लालू नीतीश तेजस्वी कि तिकड़ी ओबीसी आरक्षण की मांग करेंगे जैसा कि हम देखे ही रहे हैं कि राहुल गांधी हर रैली में ओबीसी आरक्षण की बात करते हैं और अब वह पूर्ण रूप से नीतीश कुमार की सभी नीतियों का पूर्ण समर्थन करते दिख रहे हैं वही यह भी देखने में लग रहा है कि नीतीश कुमार अपना वर्तमान समय संपूर्ण रूप से 2024 लोकसभा चुनाव के लिए लगा रहे हैं जिससे कि मोदी को हराने का मुकम्मल प्लान तैयार हो सके।
अब दूसरी तरफ अगर हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गतिविधियों पर ध्यान दे तो हम पाएंगे कि उनके प्रमुख सेनापतियों में से एक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पूरा फोकस राम मंदिर पर है। अयोध्या में होने वाले रामलाल के प्राण प्रतिष्ठा का समय भी निश्चित हो चुका है जो आगामी वर्ष 22 जनवरी को होना तय हो चुका है। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री इसके मुख्य यजमान होंगे तो उसके ठीक पहले 9 नबम्बर को उस समय हद हो गई जब योगी सरकार ने पहली बार लखनऊ से दूर अयोध्या में अपनी पूरी कैबिनेट बैठक की। जो यह बताने के लिए काफी है कि 2024 की राजनीति में भाजपा का मूल मंत्र एक बार फिर कमंडल होने वाला है। पूरे अयोध्या में सीएम योगी अपनी कैबिनेट के साथ हनुमानगढी में बजरंगबली की आरती करते देखे गए उन्होंने राम मंदिर का जायजा भी लिया और भगवान का आशीर्वाद लेने के बाद राम कथा सभागार में पूरी कैबिनेट के साथ बैठक भी की। किसी ने शायद इस पूर्व नियोजित प्लान पर ध्यान नहीं दिया। ज्ञात हो की 9 नवंबर 1989 को ही राम मंदिर के लिए शिलान्यास हुआ था वही 9 नवंबर 2019 को ही रामलला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था और अब एक बार पुनः 9 नवंबर की तिथि का ही चुनाव कर पूरी कैबिनेट को अयोध्या लाया गया। चुनाव से पहले भाजपा अपने हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने में जुटी हुई है।मोदी की हर सभा में राम मंदिर व प्रभु श्री राम की चर्चा हो रही है। हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भी राम मंदिर का जिक्र करते हुए अयोध्या में ताला खुलवाने का चर्चा जरूर कर रही है।
अब फैसला देश की जनता को करना है कि हम कब तक इन राजनेताओं के बिछाए जाल ,जाती-धर्म,अगड़ा-पिछड़ा,के खेल में उलझ कर अपने आनेवाली पीढ़ी का भविष्य बर्बाद करते रहेंगे या फिर इन राजनेताओं की चालाकी भरी बिछाई विसात से बाहर निकलकर अपने आनेवाली पीढ़ी के प्रति अपना दायित्व निर्वहन करेंगे ।अगर हम अब भी नही समझे और सम्भले तो हमे पूर्ण रूप से शून्य पर जाने से कोई नही रोक सकता ।