वर्ष 2012 के बाद लाभांश मद में कृभको से भारत सरकार के उर्वरक विभाग को नहीं मिला फूटी कौड़ी
—विभाग को अब तक 350 से 380 करोड़ का घाटा, इक्विटी मद में विभाग का 190 करोड़ जमा
— सरकारी इक्विटी को लेकर अतारांकित प्रश्न फरवरी 2018 में माननीय सांसद श्रीमती दर्शन विक्रम जरदोश ने जोरदार तरीके से रखा था सदन के पटल पर
— संबंधित मंत्री द्वारा कारवाई हेतु आश्वासन के बाद भी अबतक नहीं हुई कारवाई
गरीब दर्शन / पटना – कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड में इक्विटी मद में भारत सरकार के उर्वरक विभाग का 190 करोड़ रुपया जमा होने के बाद भी विभाग को वर्ष 2012 के बाद लाभांश मद में फूटी कौड़ी भी नहीं दिया गया है जिससे विभाग को अब तक तकरीबन 350 से 380 करोड रुपए घाटा उठाने का अनुमान लगाया जा रहा है। उर्वरक सहकारी समितियों में सरकारी इक्विटी को लेकर 6 फरवरी 2018 को सांसद श्रीमती दर्शन विक्रम जरदोश ने सदन के पटल पर और तारांकित प्रश्न संख्या 467 के माध्यम से रसायन एवं उर्वरक मंत्री से यह जानना चाहा कि सहकारी उर्वरक इकाई द्वारा सरकारी इक्विटी का कानूनी रूप से विनिवेश नहीं किया गया है, यदि हां तो इकाई- वार इसका ब्यौरा क्या है और इस मामले में सरकार द्वारा की गई/ की जाने वाली कारवाई की स्थिति क्या है ? तो इसके उत्तर में माननीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने अपने जवाब में सदन में कहा कि भारत सरकार की इक्विटी का प्रत्यावर्तन विवादित है। क्योंकि यह इन सहकारी समितियां के तत्कालीन उप- नियमों का उल्लंघन करके किया गया था, जिसे बहु राज्य सहकारी समितियां अधिनियम 2002 के अधिनियमन के बाद उनके द्वारा अवैध और गैर कानूनी तरीके से संशोधित किया गया था। उर्वरक विभाग में सबसे पहले इफको का मामला उठाया और फिर इफको द्वारा उप- नियमों के अवैध संशोधन और उसके बाद केंद्रीय रजिस्टार द्वारा पंजीकरण के खिलाफ बहु राज्य सहकारी समितियां अधिनियम 2002 के धारा 99 के तहत अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपील दायर की है। ध्यातब्य हो कि इक्विटी वह कुल राशि है जो एक शेयरधारक को तब प्राप्त होती है, जब कंपनी के सभी ऋण चुका दिए जाते हैं और उसकी संपत्तियां समाप्त हो जाती हैं। जब कोई व्यक्ति किसी कंपनी की इक्विटी में निवेश करता है तो वह उसका आंशिक मालिक बन जाता है। अब यहां यह एक यक्ष प्रश्न उठ रहा है कि जब कृभको में भारत सरकार की राशि जमा है तो उसे लाभांश क्यों नहीं दी जा रही है ?
सूत्रों के अनुसार “माल महाराज के मिर्जा खेले होली” की तर्ज पर कृभको प्रबंधन चैन की बंशी बजा रहा है वहीं उर्वरक विभाग की रहस्यमय चुप्पी से प्रति वर्ष भारत सरकार को लाभांश मद में करोड़ों रुपए का घाटा उठाना पड़ रहा है । स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अखबार द्वारा भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक विभाग के मेल आईडी पर कृभको में विभागीय इक्विटी की जानकारी मांगी गई तथा उनके लैंडलाइन नंबर पर संपर्क साधने के बाद भी सचिव के कर्मी द्वारा बार- बार तालमटोल करते हुए जानकारी नहीं दी जा रही है तथा नाहीं विभाग के सचिव से हीं बात करायी जा रही है जो गहन जांच का विषय है। जानकारों का कहना है कि भारत सरकार का प्रतिनिधि कृभको के निदेशक मंडल में होना चाहिए जो उनके हितों की रक्षा कर सके किंतु सूत्रों के अनुसार भारत सरकार का निदेशक कृभको में नहीं है। विभाग की ऐसी कार्य संस्कृति उसकी पारदर्शिता पर प्रश्न वाचक चिन्ह खड़ा कर रही है। अब देखना बाकी है कि भारत सरकार अपनी जमा राशि के विरुद्ध लाभांश की प्राप्ति हेतु कृभको पर क्या कारवाई करती है ? यह समय के गर्भ में है ।